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जल है तो कल है कहानी -03-Apr-2024

जल है तो कल है

हमारा देश जल संपदा से संपन्न रहा । गंगा-जमुना ब्रह्मापुत्र, कावेरी जैसी विस्तृत नदियां   ,सरोवर तालाबों से लबालब बाग बगीचे ,इन सब से हम कभी संपन्न रहें। नदियों के किनारे सभ्यताएं विकसित होती रहीं ।हमारे देश में गंगा यमुना सरस्वती नदी के संगम पर आयोजित होने वाला कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा मेला कहा जाता है। कुंभ स्नान की महत्ता के बारे में ऐसा मैंने पढ़ा है ,कि देवता भी कुंभ स्नान के लिए लालायित रहते हैं । एक परंपरा मैदानी क्षेत्रों के मंदिरों में ,देखने को मिलती है मंदिर के निकट सरोवर कुंड अवश्य होते हैं । पहाड़ों से सुगमता से बहते झरने किसी नीरस चित्त वाले को भी आकर्षित कर लेते हैं । जल की प्रचुरता इतनी है कि पहाड़ों के बीच में गर्म जलकुंड भी अपने सौंदर्य के मोह जाल में हमें फंसा कर खींच लेते हैं । दक्षिण के समुद्र के किनारे भ्रमण  कर चुके व्यक्ति को उस आनंद को  भूल पाना आसान नहीं होता । समुद्र में व्यवसाय की अतुलनीय क्षमता है ,मछुआरों को विपरीत परिस्थिति में भी वहां से दूर नहीं कर पाता । भारत की राजधानी दिल्ली कभी झील सरोवरों के जल से लबालब थी । राजधानी दिल्ली में इतने घने जंगल थे ,कि जंगली जानवरों के डर के कारण  जंगल के आसपास रहने वाले लोग शाम को घर से ही नहीं निकलते थे । वही दिल्ली आज हरियाली और पानी को तरस रही है ।एक शहर से  मिले हुए शहर की हम यात्रा करें तो ऐसा नहीं हो सकता था कि बीच में नदी या पोखर ना पड़े । कुंए  तो नवीन सभ्यता ने अनुपयोगी समझकर पाटने शुरू कर दिए । पहले के धनिक लोग धर्मशाला और कुएं का निर्माण करवाना बहुत पुण्य समझते थे । अब तो कहने को अपनी दानवीरता दिखाने के लिए  अपने नाम पट्टिका लगवा कर लोग वाटर कूलर तो लगवा देते हैं और वह कितने दिन चलेगा इसकी जिम्मेदारी लगवाने वाले की ना होकर उसका पानी पीने वाले की होती है। सुना है पहले कुए की सफाई पर भी लगवाने वाला ही ध्यान देता था । जब सूरज अपने प्रबल तेज को  फैलाता है उस जेठ के महीने  की निर्जला एकादशी पर स्वयं निर्जल रहकर  प्याऊ लगवाना सबसे बड़ा पुण्य कहा गया है । भारतीय संस्कृति में सबसे बड़ा पुण्य का गया है हमारे वेदों में जल को देवता कहा गया है अर्थात जल हमारे लिए सदैव पूज्य है अतः इसका सम्मान सर्वोपरि है । जल को सम्मान देते हुए हमें उसको व्यर्थ नहीं  बहाना चाहिए । , जल संकट का सबसे बड़ा उदाहरण सिंधु घाटी की सभ्यता का विनाश के रूप में देखने को मिलता है इतने प्रचुर जलसंपदा से हम संपन्न होने पर भी जल संकट से जूझ रहे हैं । खुदाई में प्राप्त हुए सिंधु घाटी सभ्यता को घोषित करने वाले उस समय की नगर व्यवस्था को देखकर हम हैरान हो जाते हैं कि हमारे पूर्वज कितने समृद रहे होंगे पर पानी की कमी से पूरी पूरी सभ्यता अपने वैभव को छोड़ पलायन कर गयी। वर्षा के ना होना का मुख्य कारण उसी स्थान पर वृक्षों का अभाव होता है ,हम अपनी सुविधा के लिए वृक्षों को  बाधक समझकर जंगल के जंगल काटकर पृथ्वी को समतल करते जा रहे हैं, वृक्षों का अभाव ही मानव जाति के लिए उत्पन्न हो रहे जल संकट का मूल कारण है। जंगलों के कटान से पक्षी और जानवर भी निराश्रित हो गए हैं, हम अपनी सुविधा के लिए किस-किस को कष्ट पहुंचा रहे हैं इस बात से हम  बेखबर है ऐसा लगता है । मनुष्य को रहने के लिए जितनी मकान की जरूरत है उससे ज्यादा शरीर पोषण के लिए धरती में पैदा होने वाले अनाज   की भी जरूरत है, कृषि योग्य भूमि  में भी हम फसल की जगह बहुमंजिला इमारतें उगा रहे हैं । ‌अभी कुछ दिनों पहले मैंने राजस्थान के जिले रतनगढ और महेंद्रगढ़ की यात्रा की वहां पर भव्य मंदिर और महलों को देखकर आंखें हैरान हो गई, जहां पर आज पीने को पानी नहीं है ,वहां इतने समृद्ध महल और भवन हैं । ‌आखिर यह भी कभी समृद्ध  लोगों से नगर समृद्ध रहे होंगे पर वहां की गर्मी असहनीय है, गर्मी का मुख्य कारण हरे-भरे वृक्षों का अभाव दिखाई दिया । सडक किनारे दूर दूर तक सूखी झाडियों को देख धरती की असहनीय प्यास की पीड़ा का आभास मन को द्रवित कर गया। लोग अपने महल चौबारे छोड़कर दूर शहरों में जाकर बस गए ,और फिर इधर मुड़ कर भी ना देखा और इस सब का कारण जलसंपदा का पूर्ण अभाव और वृक्षों के अभाव में वर्षा का ना होना । ‌अभी भी  कुछ ऐसी जगह अपने धार्मिक स्थलों की वजह से लोगों के आने जाने से गुलजार हैं और धार्मिक लोगों की सुख सुविधा के लिए थोड़ा बहुत व्यापार चल रहा है जो कि कुछ बचे हुए लोगों के रहने का माध्यम है । ‌ ‌हमें अपनी जलसंपदा का पूर्ण सम्मान करना ही होगा नहीं तो आने वाली शताब्दियों में ह मारा भविष्य भी हमारे वैभव के गीत गाएगा । ‌ ‌और आने वाली पीढियाँ भी  लुप्त हो  चुकी सभ्यता के रूप में हमारा वैभव खोजेगी । जल का पूर्णतया सम्मान और वचत ही मानव जाति के लिए आवश्यक है। अपनी सभ्यता को नया आयाम तैयार कर ने के लिए हमे वृक्षारोपण और जतसपदा का सम्मान - करना ही होगा। वर्षों से बन्द पड़ी इन शानदार हवेलियों के दरवाज़े खुलने का इन्तजार करते करते जंग खा गए ऐसी अनगिनत हवेलियों के स्वामी जल के अभाव में अपना वैभव छोड़ पलायन कर गए ।

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7 Comments

Mohammed urooj khan

16-Apr-2024 12:07 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Varsha_Upadhyay

10-Apr-2024 11:39 PM

Nice

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Babita patel

07-Apr-2024 09:57 AM

Amazing

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